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Wednesday 27 June 2012

बाबा मस्तनाथ जी द्वारा खिडवाली गांव को शाप देना
हरयाणा राज्य के धार्मिक जनों के हृदय स्थल `अस्थल बोहर `से बारह मील कि दूरी पर खिडवाली नामक विशाल गांव स्थित है| एक बार, अपनी धर्म यात्रा के प्रसंग में, सिद्ध सिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी खिडवाली पधारे |
योगिराज के शिष्यों ने उनकी अग्नि तपस्या के लिए, गांव के बाहर, उनका परम पावन धूना रमाया |
धूने को निरन्तर प्रज्वलित रखने के लिए समिधाओं (लकडियों) कि आवश्यकता पूर्ण करने के लिए, सिद्ध शिरोमणि कि आज्ञा से, उनके परम अनुरक्त शिष्य योगी श्री रनपतनाथ तथा योगी श्री धातानाथ गांव में पहुंचे|उन दिनों खिडवाली गाँव में राऊ पाने (मौहल्ला) कि चौपाल का भवन बनाने कि तैयारियाँ कि जा रही थी| इस प्रयोजन कि पूर्ती के लिए, एक विशालकाय वजनदार लकड़ी का सह्तीर लाया जा चुका था तथा अन्य सामान भी जुटाया जा रहा था इसी प्रसंग में गांव के अनेक पुरुष एक स्थान पर एकत्र बैठे थे | योगी श्री रनपतनाथ तथा योगी श्री धातानाथ ने एक ही स्थान पर एकत्रित उन पुरुषों के पास जाकर कहा कि गांव के सौभाग्य से सिद्ध सिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी उनके गांव में पधारे हैं | गांव के बाहर उनका पावन धूना रमाया गया है |उस धूने को निरंतर प्रज्वलित रखने के लिए लकड़ी कि आवश्यकता है | आपको यह सुयोग प्राप्त है कि- आप लकड़ी कि आवश्यकता पूर्ण कर पुण्य – लाभ प्राप्त करें |
परन्तु उस पुरुषों के समूह में ऐसे लोग सामिल थे कि उन्हें सिद्धों के महात्म्य का ज्ञान नहीं था अत: उन लोगों ने उन दोनों योगियों (योगी श्री रनपतनाथ तथा योगी श्री धातानाथ) से परिहास करने के विचार से समीप ही भूमि पर पड़े सहतीर कि ओर ऊँगली कर कहा कि वे धूने को प्रज्वलित रखने के लिए उसे उठा ले जाएँ |
परिहास करने वाले वियक्तियों का विचार था कि पचासों वियक्तियों द्वारा मिलकर जो सह्तीर उठाया न जा सकता हो उसे यर दोनों कैसे उठा सकते है यह सर्वथा असम्भव है अत वे योगी उस सह्तीर को उठा कर नहीं ले जा sसकेंगे इस प्रकार उनका सह्तीर उनके पास पड़ा रहेगा और उन्होंने योगिओं को लकड़ी देने से इंकार कर दिया इस निंदा से भी बचे रहेंगे इस प्रकार उनके दोनों हाथों में लड्डू रहेंगे | इसी विचार से उन्होंने योगिओं का परिहास किया था |पर उन्हें योग कि अमित शक्तियां का ज्ञान नहीं था | उन्हें यह पता नहीं था का योग साधना के कारण सामान्य से प्रतित होने बाले शरीर में अतुल –बल का संचार हो जाया करता है और योगीजन बल-विक्रम भी बहुत आगे बढ़ जाते है| योग साधना के कारणयोगी श्री रनपतनाथ तथा योगी श्री शातानाथ जी के शारीर में नेक हाथियों जितना बल संचित हो चुका था अत; उन दोनों को वह भारी शहतीर उठाने में कोई कठिनाई प्रतीत नहीं हुई और उन दोनों नें उस भारी शहतीर को ऐसे उठा लिया कि मनो वह कोई अत्यंत सामान्य भार रहित पदार्थ हो| दानो योगी उस शहतीर को वहाँ से उठा कर शिध शिरोमणि मस्त नाथ जी के पास ले गये| यह देखकर लोगो को अत्यधिक विस्मय हुआ साथ उन लोगो को अब यह भी चिंता हुई कि सचमुच ही इन योगियों ने यह शहतीर ले जाकर शिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी के धुनें में लगा दिया तब चौपाल के लिए दूसरा शहतिर कहाँ और कैसे आयेगा? यह विचार मन में आते ही उन लोगो ने निश्चय किया कि उन्हें बाबा के धुनें पर जाकर वह शहतीर वापस लेन लाना चाहिये | खिरावली गांव के लोग ,ग्राम के बहार , शिद्ध शिरोमणि बबमास्त नाथ जी के धुनें पर पहुचे |वहा जाकर उन्होंने देखा कि गाव कि चौपाल के भवन निर्माण के लिए लाया गया वह
शहतीर शिद्ध शिरोमणि बाबा के धुनें में लगाया जा चुका था | गाव के लोग वह शहतीर वापस ले जाना चाहा |
सिद्ध श्रोमानी बाबा मस्तनाथ जी ने उन्हें समझाया कि योगीजनों का धूना यज्ञ स्वरुप होता है उसमें जलाई जाने वाली लकड़ी यज्ञ सामग्री होती है अब यह शहतीर यज्ञ सामग्री बन कर धूने में लगने से यज्ञ कि आहुति बन चुका है अत उन्हें उस शहतीर कि वापस ले जाने का विचार छोड़ देना चाहिए | साथ उन्हें यह भी समझाया कि यज्ञ में डाली गई यज्ञ सामग्री को निकालना यज्ञ ध्वंश करने के सामान है अत उन्हें ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिए |
समय का प्रभाव ही समझिए कि सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी कि इन मंगलकारी बातों का उन गांव के लोगों बिल्कुल भी प्रभाव नहीं पड़ा और वे उस सह्तीर को ले जाने के लिए कृतसंकल्प रहे | उस जनसमूह में जंगी व घोघड नामक दो व्यक्ति प्रमुख थे | उन्होंने लोगों से कहा कि बाबा कि बातों पर धियान न् देकर सह्तीर को निकाल कर वापस ले चलना चाहिए जिससे चौपाल का निर्माण किया जा सके |
गांव के लोगों ने जंगी व घोघड कि बात मानी उन्होंने योगीराज बाबा मस्तनाथ के धूने से शहतीर निकाल लिया और उसे वहां से उठा कर गांव कि ओर ले जाने लगे |सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी को यज्ञ स्वरूप अपने प्रिय धूने के इस अपमान से भरी दुख हुआ | उन्होंने खिडवाली गांव के उद्दंड लोगों के मुखिया जंगी व घोघड को शाप दिया कि जंगी को तंगी तथा घोघड का लोगड हो जायेगा ! साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिस चौपाल भवन निर्माण कार्य के लिए यह शहतीर ले जाया जा रहा है वह चौपाल भवन नहीं बनेगा |
सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ द्वारा खिडवाली गांव का परित्याग करके वहां से चले जाने कि घटना का गांव के धर्मपरायण लोगों को पता चला तो वे बहुत दुखी हुए खिडवाली गाव
के सृद्धालो नर नारियों को शिद्ध शिरोमणि द्वारा खिडवाली गांव ग्राम का परित्याग कर उनका वह से चला जाना गांव के लिए नितांत श्रमंगलकारी तथा अशुभ प्रतीत हुआ उन्होंने निश्चय किया वे सब सिद्ध शिरोमणि बाब मस्तनाथ जी जहा भी गए हों वहाँ उनके पीछे –पीछे जाकर उनके पास पहुंचेंगे और उन्हें यथोचित पूजा सत्कार द्वारा प्रसन्न कर वापस खिडवाली गांव में आने के लिए राजी करेंगे | खिडवाली गांव के सभी नर नारियां ,सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी के श्री चरणों में समर्पित करने के लिए भांति-भांति कि ‘भेंटें’अपने साथ लेकर ,उसी मार्ग पर चल पड़े जिस मार्ग को ग्रहण कर, खिडवालीगांव का परित्याग कर ,शिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी गए थे |
खिडवाली गांव के इन धार्मिक नर-नारियों में खिडवाली गांव के चौधरी भजनाराम नामक एक सत्तर साल के एक जाट भी सम्मिलित थे | वह नि:संतान थे परन्तु उनकी सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी के पवन चरणों में अभिचल निष्ठा तथा गहन स्रेद्धा थी |यह भी सिद्ध सिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी को प्रसन्न करने के लिए ,लाठी टेकते ,टेकते गांव के नर-नारियों के साथ चल पड़े |
खिडवाली गांव से दो कोस दूर धरावती नामक एक गांव हैं |सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी खिडवाली गांव का परित्याग करके उसी धरावटी गांव में पहुंचे और वहां पर उन्होंने अपना पावन धूना लगाया |
खिडवाली गांव के श्रद्धाल नर नारी सिद्ध सिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी के पास धूने पर पहुंचे और उनके चरणों में लेट गए |
और उन्होंने उनसे क्षमा प्रार्थना कि की वे खिडवाली गांव द्वारा किये गए अपराध को क्षमा करें और पुन: खिडवाली गांव में पधारने की कृपा करें और साथ में उके द्वारा लाई गई पूजा भेंट स्वीकार करें |
सिद्ध सिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी खिडवाली गांव के लोगों द्वारा लाई गई पूजा भेंट को स्वीकार नहीं किया और उन्हें वापस लौटा दिया | खिडवाली गांव के लोगों द्वारा बार बार अनुनय विनय करने पर सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी ने कहा की इस समय तो वे खिडवाली गांव में नहीं जावेंगे कालान्तर में वे, भूरे हाथी पर सवार भूतनी दरवाजा से गांव में जावेंगे और पूजा भेंट स्वीकार करेंगे |
इस युग में योग शक्तियों का चमत्कार देखना हो तो वह खिडवाली गांव में देखा जा सकता है | सिद्ध सिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी ने खिडवाली गांव के राऊ पाने की जिस चौपाल को शाप दिया था वह चौपाल शाप के सवा दो सौ साल की लंबी अवधि बीत चुकी है पर इस समय तक चौपाल नहीं बन पाई है ! उतना ही नहीं अधिक आश्चर्य कि बात तो ये है कि जब जब भी उस चौपाल –भवन को बसाने कि चेष्ठा हुई है तब तब सदा ही गांव में प्राय:हुए हैं ,मनुष्य मरे हैं ,मुकद्दमे हुए हैं ,और अन्य अनेक प्रकार के संकट उत्पन हुए हैं |परिणाम यह हुआ कि वह चौपाल भवन अब तक नहीं बन पाया है! जिस भूमि खंड पर वह चौपाल भवन बनना था इस समय भी वह भूमि खंड पर अपने पशु बंधने शुरू किये तो पहले तो उसकी एक भेंस मर गयी |इस घटना के बाद उसने वाहन पशु बांधना बंद कर दिया इस घटना के कई वर्ष बीत जाने पर खिडवाली गांव के ही श्री मुंशीराम नामक एक व्यक्ति ने उस भूमि खंड पर अधिकार कर उस पर अपने पशु बांधना आरंभ किया |थोड़े ही दिन के बाद श्री मुंशीराम कि धरम पत्नी पागल हो गयी ! श्री मुंशीराम ने उस भूमि खंड से अपना अधिकार हटा लिया और वहां अपना पशु बांधना बंद कर दिया और ज्योत जला कर बाबा कि बह उसकी धरम पत्नी को स्वस्थ करने कि कृपा करे | लोगो के आश्चर्य और आनंद का परवर न रहा जब उन्होंने देखा कि श्री मुंशी राम कि धरम पत्नी पूरण स्वस्थ तथा निरोग हो गयी तभी से वह भूमि खंड उसी भांति पड़ा है और इसके बाद किसी भी व्यक्ति ने उस भूमि खंड पर अधिकार नहीं किया है |

Monday 11 June 2012

श्री बाबा मस्तनाथ जी द्वारा बचपन में ग्वालों  और        बारातियों को चमत्कार दिखाना

एक बार सब ग्वालों ने मिलकर मस्ता जी से कहा की वे सब जंगल में उनके साथ खेलना चाहते हैं | गाएं चरती रहेंगी और पास में ही उनका खेल भी होता रहेगा | मस्ता जी ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
अगले दिन जंगल में सारे ग्वाले मिलकर खेलने लगे खेल खेल में उन्हें समय की भी सुध भी न रही जब सायं काल होने को आया तो ग्वालों ने कहा की प्यास के मारे उनका बुरा हाल हो रहा है कही आसपास पानी नहीं है अब वे क्या करें |बिना पानी उनका मर जाना साफ़ दिखाई पड़ रहा है |
मस्ता जी ने उनके इस संकट को समझा | वे एक खाली बाल्टी लेकर एक गाय के पास पहुचे और उसका दूध निकाल कर ले आये उस दूध से सब ग्वालों की प्यास बुझाई ओर उन्हें भर पेट दूध पिलाया |
समीप ही मार्ग से एक बरात जा रही थी मस्ता ने बारातियो को बुला कर उसी बाल्टी दूध से बारातियो को भी दूध पिलाया आश्चर्य यह रहा की उस एक बाल्टी में से समस्त पालियों और सारे बारतियों को दूध पिलाया जाने पर भी बाल्टी भरी की भरी ही रही
बारातियों नें यह अचम्भा देखा तो चकित रह गए उन्होंने यह समझ लिया मस्ता जी सिद्ध–पुरुष हैं. उन्होंने मस्ता जी से उनका घर का पता पूंछा और बिदा ली| उन्होंने निश्चय किया की लौटती बार वे सब मस्ता जी के घर जायेंगे और उस पावन घर का शुभ दर्शन अवश्य करेंगे जहाँ मस्ता जी ने जन्म ग्रहण किया है |
ग्वालों ने मस्ता जी के चमत्कार की बात गांव के लोगों को बताई तो लोगों ने बच्चों की बात समझकर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसे हँसी मैं टाल दिया |
विवाह के बाद वह बरात लौटती हुई कंसरेटी गांव मैं आई और उन बरातियों ने भी जब यह घटना सुनाई तब सभी गांव वाले मस्ता जी के इस चमत्कार को सुन कर चकित रह गए |
बाराती सबला(मस्ता के पिता ) के घर गए और ऐसा सिद्ध सपूत पाने पर उन्हें बधाई दी |
सायं काल जब मस्ता जी घर लौटे तब सबला जी ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा कि- बेटा! कल से तुम घर पर ही रहो, भगवान का भजन करो | गाय चराने का कोई दूसरा प्रबन्ध कर लिया जाएगा |
बालक मस्ता ने अपने पूज्य पिता की आज्ञां शिरोधार्य की और इसके अनुसार आचरण करने लगे |
यदि आप बाबा मस्तनाथ जी से सम्बंधित कोई जानकारी चाहते हैं तो आप लोगिन कर सकते हैं sbmnmath.blogspot.com पर और मेल कर सकते हैं sbmnmath@gmail.com पर और फेस बुक पर लोगिन कर सकते हैं sbmnmath@facebook.com पर |

Friday 1 June 2012

OUR RICH HERITAGE 
Sidh Shriomani Shri Baba MastNath Ji Maharaj
Samadhi of sidh siromani Baba Mastnath Ji 
The life of Sidh Shiromani Baba Mastnath ji is full of miracles and wonders. He is known to be reincarnation of Guru Gorakshnath ji. It was during his time that Math Asthal Bohar was rejuvenated and brought prosperity to math.
He appeared in 1764 in a village named Kansrati in Rohtak district in Haryana. A merchant named Sabala brought him up. He was named Masta. As a child he was known for this charismatic acts. His father discovered that he seemed to be omnipresent while shepherding. He also caused clouds to rain with his spiritual powers. He used to mesmerize villagers and shepherds by distributing milk among them from a single bucket without even emptying it once. He was often sighted to be in company of many sages in his courtyard. But when people used to enquire about all this the child Masta always pretended to be ignorant. All these led his father Sabala to conclude that his son was not an ordinary person. He discussed all these incidents with the villagers and decided to hand over him to some saint. But they were unable to find out any such saint. Some time elapsed and Shri Narmienath ji, the follower of “Aai sect” visited the village. He was not an ordinary saint. Child Masta requested him to take him as his disciple. After initial refusal, he gave in to his request and named him “Mastnath.” He did many miracles in company of ‘Darshani yogis.’ These yogis tried to convince other yogis from all of their 12 sects that they should worship Mastnath ji, but failed to do so. Then Baba Mastnath ji demonstrated his spiritual powers by summoning hurricanes followed by excessive heat by stopping flow of air. On witnessing these “Rechak and Kumbhak miracles” yogis from all the 12 sects were speechless and accepted him as worship-able and was thereafter addressed as ‘Sidh Baba Mastnath ji.’ In this manner Aai sect was now known as Nath sect. After being worshiped and honored in Pehwa, Baba Mastnath ji moved to Math Asthal Bohar that was established by Chauranginath ji in 8th century and later on destroyed by him only. He rejuvenated it, mediated there and resurrected the glory of the Math.
 
 SIDH SHRI TOTANATH JI
Became the Mahent of Math in Falgun month of the year Samvat 1864. He did yeoman services for mankind followings teaching of his Guru ji Shri MastNath Ji. He travelled to the kingdom of Bikaner, where Maharaja Surat Singh, being impressed with services, devoted a village named Gangani Thedi to him. He constructed many wells, temples to develope the math. He took Samadhi in the month of Shravan 1894 
    
 
 
SIDH YOGIRAJ SHRI MEGNATH JI
Became the Mahent of Math in Shravan month of the year Samvat 1894. He too was a very learned personality. A large number of big traders, being impressed with him become devotees of the Math which included many from 'Rehbari' castes. Offerings from these people led to rise of the Math. He took smadhi in Chaitra month of Samvat 1923. 




SIDH YOGIRAJ  SHRI MOHARNATH JI
Became the Mahent of Math in Chaitra month of Samvat 1923. He was very wise and preached and fought against many ill-traditions of the society. It was during his tenure that elephants and horses were domesticated by the Math. These animals were used for transporting sages to far away places for perching.  He took Samadhi in the Poha month of Shravan 1935     




 
SIDH YOGIRAJ  SHRI CHETNATH  JI
Became the Mahent of Math in Poha month of Samvat 1935. Many adversity were faced by Math during his period but at the end the Math came out more prosperous. He was a great admirer of Sanskrit Literature and his love for the language led to establishment of Sanskrit college in the Math. He also began farming on large tracts of waste lands available with the Math. He took Samadhi in the Chitra month of Shravan 1963
    




SIDH YOGIRAJ SHRI POORANNATH JI
Became the Mahent of Math in Chitra month of Samvat 1963. Like his guru he too had a great love for Sanskrit. He established a Sanskrit college by the name of 'Yogashram' in Mayapur, Haridwar. He took the Math to new heights of prosperity and added hundreds of bighas of land to the property of the Math. He helped British Government in the war of 1914, recognizing which he was awarded 'Kesar-e-Hind'. He was so apt at politics that entire Haryana was impressed with him. He left his Gaddi while alive on 8th Feb 1939 for his disciple Shri Shreonath ji.     






SIDH YOGIRAJ SHRI SHREONATH JI
Became the Mahent of Math in on 28th Feb 1939 .He was a great admirer of Sanskrit, Ayurveda, Farming and building constructions. he added a lot of revenues of the Math by means of farming. Inspired by the saying 'VIDHEYAM JAN SEVNAM' means Serving People. He established a 200 bed charitable eye hospital, Ayurveda college, 150 bed Charitable general hospital and Yogiraj Pharmacy at Asthal Bohar, Rohtak and a 200 bed Charitable eye hospital at Thehadi Gangani, Hanumangarh, Rajasthan. He also served as health minister in Haryana Government. he become famous all over North India for his philanthropic services. He nominated his able disciple Shri Chand nath ji as his successor on 21st May 1984. He took Samadhi in the month of Jan 7th 1985. 


       SIDH YOGIRAJ SHRI SHREONATH JI's TRIO     

Mahent Shri 108 Chand Nath Yogi Ji
 
 Pujari Hazari Nath Ji








JAI BABA MASTNATH JI 







             NATH SAMPRDAY KE NAVNATH



  • SHRI ACHAL AHAMBHE NATH JI
  • SHRI RAJ KANTHAD NATH JI
  • SHRI CHAURANGI NATH JI
  • SHRI MATSYANDER NATH JI
  • SHRI GURU GORAKSH NATH JI
  • SHRI AADI  NATH JI
  • SHRI UDAY NATH JI
  • SHRI SATYA NATH JI
  • SHRI SANTOSH NATH JI
  nath samprdaya ke 84 siddhon ke nam
 
 
 
Kapil Nath Ji
Sanak Nath Ji
Lanknath Raven Ji
Sanatan Nath Ji
Vichar Nath Ji / Bhrithari Nath Ji
Chakranath Ji
Narmai Nath Ji
Rattan Nath Ji
Shringeri Nath Ji
Sanandan Nath Ji
Nivriti Nath Ji
Sanat Kumar Ji
Jwalendra Nath Ji
Saraswatai Nath Ji
Brahmai Nath Ji
Prabhudev Nath Ji
Kankai Nath Ji
Dhundhkar Nath Ji
Narad Dev Nath Ji
Manju Nath Ji
Mansai Nath Ji
Veer Nath Ji
Haritai Nath Ji
Nagarjun Nath Ji
Bhuskai Nath Ji
Madra Nath Ji
Gahini Nath Ji
Bhuchar Nath Ji
hambb Nath Ji
Vakra Nath Ji
Charpat Nath Ji
Bileshyan Nath Ji
Kanipa Nath Ji
Birbunk Nath Ji
Gyaneshwar Nath Ji
Tara Nath Ji
Suranand Nath Ji
Siddh Budh Nath Ji
Bhagai Nath Ji
Pipal Nath Ji
Chandra Nath Ji
Bhadra Nath Ji
Eka Nath Ji
Maanik Nath Ji
 
 
 
 
 
Gehellearao Nath Ji
Kaaya Nath Ji
Baba Mast Nath Ji
Yagyawalakya Nath Ji
Gaur Nath Ji
Tintini Nath Ji
Daya Nath Ji
Hawai Nath Ji
Dariya Nath Ji
Khechar Nath Ji
Ghoda Colipa Nath Ji
Sanjai Nath Ji
Sukhdev Nath Ji
Aghoad Nath Ji
Dev Nath Ji
Prakash Nath Ji
Korat Nath Ji
Baalak Nath Ji
Baalgundai Nath Ji
Shabar Nath Ji
Virupaksh Nath Ji
Mallika Nath Ji
Gopal Nath Ji
Laghai Nath Ji
Alalam Nath Ji
Siddh Paddh Nath Ji
Aadbang Nath Ji
Gaurav Nath Ji
Dhir Nath Ji
Sahiroba Nath Ji
Proddh Nath Ji
Garib Nath Ji
Kaal Nath Ji
Dharam Nath Ji
Meru Nath Ji
Siddhasan Nath Ji
Surat Nath Ji
Markanday Nath Ji
Meen Nath Ji
Kaakchandi Nath Ji
Bhagai Nath Ji
Pipal Nath Ji
Chandra Nath Ji
Bhadra Nath Ji
Eka Nath Ji
 
 
 
 
 
 
Maanik Nath Ji
Gehellearao Nath Ji
Kaaya Nath Ji
Baba Mast Nath Ji
Yagyawalakya Nath Ji
Gaur Nath Ji
Tintini Nath Ji
Daya Nath Ji
Hawai Nath Ji
Dariya Nath Ji
Khechar Nath Ji
Ghoda Colipa Nath Ji
Sanjai Nath Ji
Sukhdev Nath Ji
Aghoad Nath Ji
Dev Nath Ji
Prakash Nath Ji
Korat Nath Ji
Baalak Nath Ji
Baalgundai Nath Ji
Shabar Nath Ji
Virupaksh Nath Ji
Mallika Nath Ji
Gopal Nath Ji
Laghai Nath Ji
Alalam Nath Ji
Siddh Paddh Nath Ji
Aadbang Nath Ji
Gaurav Nath Ji
Dhir Nath Ji
Sahiroba Nath Ji
Proddh Nath Ji
Garib Nath Ji
Kaal Nath Ji
Dharam Nath Ji
Meru Nath Ji
Siddhasan Nath Ji
Surat Nath Ji
Markanday Nath Ji
Meen Nath Ji
Kaakchandi Nath J